Wednesday, March 17, 2021

कविता- आँसू ऐसे होते हैं

 

कभी कभी ऐसा होता है क्या
कहीं पर बैठे- बैठे
कहीं पर खोए - खोए
गुपचुप से अचानक आता है आँसू ?

नही-नही.. सच तो ये है
कि ये अचानक नहीं होता
उठती रहती हैं लहरें
अचेतन मन-समंदर में
होती रहती है हलचल
जैसे धरती के अंदर
और फिर लहरें हो जातीं हैं ज्वार
और वो हलचल ज्वालामुखी
मन को जैसे ही पातीं हैं कमज़ोर
फूट पड़ती हैं वहीं से

किसी आँख में उमड़ते ज्वार
या बहते लावे को देखना
तो उसे बहने देना तुम
क्योंकि समंदर का ज्वार
और ज्वालामुखी का लावा
ख़ुद से ही होता है शांत
बहते - बहते
बहते - बहते ..।।

~अतुल मौर्य
तारीख : 14 /03/2021

Thursday, March 4, 2021

ग़ज़ल- हज़ारों जख्म खाकर भी यहां पर मुस्कुराना है

 बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम


1222 - 1222 - 1222 - 1222

हज़ारों ज़ख्म खाकर भी यहां पर मुस्कुराना है
हमें काटों में रहकर भी सदा ख़ुशबू लुटाना है /1/
                 
अलग अंदाज होता है जवानी के दिनों का भी
हवा भी तेज़ है इसमें दिये को भी जलाना है  /2/

नज़र आए कहीं यारों तो मुझको इत्तला करना
हथेली खींच कर उसकी मुझे इक दिल बनाना है /3/
           
कभी बारिश कभी सावन कभी फ़ूलों के गुलशन सा
शुरू में प्यार का मौसम बहुत लगता सुहाना है /4/

नए दिल हैं नई धड़कन नई रुत है नया मंज़र
मुहब्बत भी नई बेशक मगर किस्सा पुराना है /5/
             
वो बुत जिसको तरासा हमने अपनी ज़िन्दगी देकर
उसे ही याद रखना है उसी को भूल जाना है  /6/

अमां सीखो रियाज़ी ज़िन्दगी का फ़लसफा हमसे
मुहब्बत जोड़ना इसमें  से नफ़रत को घटाना है  /7/
                
                                                  – अतुल मौर्य
                                           तारीख: 02/03/2021