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मेरी आँखों में समन्दर के सिवा कुछ भी नहीं है
और उसको देख के लगता है हुआ कुछ भी नहीं है
चारागर देख के कहते हैं मुझे तेरी कमी है
तू आ कर देख ले तो फिर ये दवा कुछ भी नहीं है
जब से पापा हुए और हुईं माँ मेरी रुख्सत
दीवारो छत के सिवा घर में बचा कुछ भी नहीं है
तुम जैसे तो पहले भी कई तूफां हैं देखे
दिल-ए-जुर्रत है वो ही इसको हुआ कुछ भी नहीं है
मेरे हालत पे न जाओ मुझसे मिलाओ आँखें
इनमें देखो औ कहो तुमने किया कुछ भी नहीं है
तेरी हर चाल तिलिस्म-ए- जीस्त समझने लगा हूँ
तुझको लगता है ‘अतुल’ को तो पता कुछ भी नहीं है
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अतुल मौर्य,
तारीख- 25/11/2025

👌
ReplyDeleteधन्यवाद
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