Thursday, January 23, 2020

मुझ जैसा ही रहने दो मुझे


मुझ जैसा ही रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

निर्मल, अविरल धाराओं में
शीतल ,सुमधुर हवाओं में
बहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।

काट कर दरख्तों को तूने अपराध किया है
नन्हें परिंदे , थे जिनके घोंसले उन पर
उन सब का घर तूने बर्बाद किया है
इन्हीं दरख्तों से बनती हैं फ़िज़ाएँ जो
इन्हीं दरियाओं से बनती हैं घटायें जो
इन्हीं फ़िज़ाओं, घटाओं में तो रहता हूँ मैं
इन्हीं में रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

ख़ुशी के बदले ग़म देने वाले
बार-बार मुझे छेड़ने वाले
मैं रूठ गया जो तुझसे ,तो तू
शेषनाग की फुफकार देखेगा
फ़िज़ाओं में हाहाकर देखेगा
चारों ओर बस चित्कार देखेगा
समन्दरों में भी अंगार देखेगा
इतनी मुश्किल न बनाओ 
आसान रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

मैं हूँ तो तुम हो ; जानते हो ना ?
तुम ठीक से मुझे पहचानते हो ना ?
प्यास हूँ , साँस हूँ
तुम्हारी जिस्म में आती जाती हवा हूँ मैं
हाँ ! आबोहवा हूँ मैं
आबोहवा सा रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे ।।

- अतुल मौर्य

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