Friday, January 24, 2020

हर रोज सुबह होती है


हर रोज सुबह होती है
हर रोज सूरज चमकता है
किरणें बिखेरता, इठलाता हुआ
हर रोज सूरज निकलता है

मेरी छत से
एक मीठी सी धुन गुनगुनाते हुए
पंक्षियों का गुजरना होता है
नर्माहट और ठंडापन लिए
हवा का बहना होता है

हर रोज इन्हीं के जैसे
मेरा भी निकलना होता है
हर रोज वही अपना काम
रस्ते नापना और बस नापते जाना
तब तक नापना की जब तक–
चमक सूरज की धीरे से सिमटने लगे
किरणों को अपनी बटोरने लगे
गुनगुन पंक्षियों की बंद होने लगे
हवा चुप्पी लिए मंद होने लगे,

हासिल होती है एक थकान मेरे हिस्से में 
सूरज,किरण,पंक्षी,हवा सबके हिस्से में

इस थकान को लेकर
घर लौट आता हूँ
इन्तिज़ार के बिस्तर पर
सो जाता हूँ, खो जाता हूँ

फिर सुबह लिए सूरज को आते हुए
बिस्तर में जागे हुए मगर सोए हुए
उसे देखता हूँ , सोचता हूँ
आखिर क्यों ये सुबह होती है
जो हर रोज ये सुबह होती है

– अतुल मौर्य
    

Vedio देखें👉https://youtu.be/FOXo7e2kpA4



No comments:

Post a Comment