Monday, January 25, 2021

ग़ज़ल -4 मेरे खामोश लहजे से कहीं ऐसा न हो जाए



बह्र -
1222 - 1222 - 1222 -1222

मेरे खामोश लहजे से कहीं ऐसा न हो जाए
मुझे डर है कि मेरा हमनवा गुस्सा न हो जाए /१/

जो तुमसे बात ना हो तो बेचारा दिल ये सोचे की
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए /२/

इधर की बात करता है उधर तो जान ले फिर तू
तेरे किरदार का आँचल कहीं मैला न हो जाए /३/

सुना है मिल रही हैं सबसे अब वो झील सी आंखें
तो फिर उस झील का पानी कहीं खारा न हो जाए /४/

न छेड़ो इस  तरह मुझको  कहे कुदरत यही हमसे
जहाँ रहता समंदर है वहाँ सहरा न हो जाए / ५/

'अतुल' रोओ न तुम ऐसे जुदा यारों  की यादों में
तबीअत में कहीं रोने से कुछ घाटा न हो जाए/६/

                                     ~ अतुल मौर्य

6 comments:

  1. Nice 🤩🤩🤩🤩6
    Kya likha hai👍👍

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  2. Wah wah wah kya khoob mere bhaiya ne likha hai

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    1. तहेदिल से शुक्रिया प्रिय अनुज

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  3. Replies
    1. तहेदिल से शुक्रिया , आलोक जी 🙏🌼

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