बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम
1222 - 1222 - 1222 - 1222
हज़ारों ज़ख्म खाकर भी यहां पर मुस्कुराना है
हमें काटों में रहकर भी सदा ख़ुशबू लुटाना है /1/
अलग अंदाज होता है जवानी के दिनों का भी
हवा भी तेज़ है इसमें दिये को भी जलाना है /2/
नज़र आए कहीं यारों तो मुझको इत्तला करना
हथेली खींच कर उसकी मुझे इक दिल बनाना है /3/
कभी बारिश कभी सावन कभी फ़ूलों के गुलशन सा
शुरू में प्यार का मौसम बहुत लगता सुहाना है /4/
नए दिल हैं नई धड़कन नई रुत है नया मंज़र
मुहब्बत भी नई बेशक मगर किस्सा पुराना है /5/
वो बुत जिसको तरासा हमने अपनी ज़िन्दगी देकर
उसे ही याद रखना है उसी को भूल जाना है /6/
अमां सीखो रियाज़ी ज़िन्दगी का फ़लसफा हमसे
मुहब्बत जोड़ना इसमें से नफ़रत को घटाना है /7/
– अतुल मौर्य
तारीख: 02/03/2021
No comments:
Post a Comment