Wednesday, January 20, 2021

रात के आँसू

 

मन के बाहर का वातावरण सो रहा
मन के भीतर है जो ,रो रहा-रो रहा
गर्जना मन की मन में ही चलती रही
आँख मलते रहे रात ढलती रही
यादों के जाने कितने किले ढह गए
और मलबे में हम थे दबे रह गए
अश्कों से थी भरी आँख प्यासी रही
और चेहरे पे कोई उदासी रही
चल पड़ा हूँ तुम्हे ढूंढ़ने स्वर्ग तक
मेरी दुनिया तुम्ही से तो है तुम तलक
ये मुझे है ख़बर और तुम्हें भी पता
ना ही मैं हूँ ग़लत ना तेरी कुछ ख़ता
बात हमने किया जब-जब भी कभी
जल उठे सारे किस्मत के पन्ने सभी
राह तक लूंगा मैं उम्र के छोर तक
आखिरी सांस की आखिरी डोर तक
आखिरी सांस की आखिरी डोर तक
रात का ये अंतिम पहर खो रहा
ले के पलकों पे मैं बोझ हूँ ढो रहा
मन के बाहर का बातावरण सो रहा
मन के भीतर है जो , रो रहा-रो रहा
रो रहा ... रो रहा...

~ अतुल मौर्य

    तारीख : 21 जनवरी 2021










4 comments: