ग़ज़ल- 3
वज़्न-
1222 - 1222 - 1222 - 1222
गुजारी ज़िंदगी हमने तो पीने में पिलाने में
मजा पीने में जो आये कहाँ वो है जमाने में //१
पिये बिन कोई क्या जाने वो पैरों का लिपट जाना
हमारा चल के रुक जाना वो पैरों को चलाने में//२
मेरी पीने की ये आदत तेरी यादों से वाबस्ता
ये सारे जाम हैं खाली सनम तुझको भुलाने में//३
की जैसे टूट के बिखरा है पैमाना ये शीशे का
हमारा दिल भी यूँ टूटा था दिल से दिल लगाने में//४
चलो यारों जहाँ भी साथ मयखाना चलो ले कर
की कब होने लगे हलचल हमारे दिल दिवाने में//५
उड़ा दी नींद भी मेरी भुला दी हर खुशी गम को
बड़ी कुर्बानियां ली है ग़ज़ल खुद को सजाने में //६
सभी थे सच्चे किरदारों के पढ़ने लिखने वाले सब
मुकम्मल ऐब वाले थे हमीं अपने घराने में //७
मोहब्बत का फ़साना छेड़ दे महफ़िल में गर कोई
हमारा नाम आएगा फसाने को सुनाने में//८
नए गीतों में अब वो बात ही मिलती नहीं अक्सर
जो होती थी लता दीदी के उन नग्मे पुराने में//९
अतुल' तुमको भला कैसे भुला सकता है अब कोई
जो रहते हो लबों पे और हर दिल के ठिकाने में //१०
अतुल' तुमको भला कैसे भुला सकता है अब कोई
जो रहते हो लबों पे और हर दिल के ठिकाने में //१०
~अतुल मौर्य
27/04/2020
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