Tuesday, April 28, 2020

ग़ज़ल - 3 गुजारी ज़िंदगी हमने तो पीने में पिलाने में

ग़ज़ल- 3
वज़्न-
1222 - 1222 - 1222 - 1222

गुजारी ज़िंदगी हमने तो पीने में पिलाने में
मजा पीने  में जो आये कहाँ वो है जमाने में //१

पिये बिन कोई क्या जाने वो पैरों का लिपट जाना
हमारा चल के रुक जाना वो पैरों को  चलाने में//२

मेरी पीने की ये आदत तेरी यादों से वाबस्ता
ये सारे जाम हैं खाली  सनम तुझको भुलाने में//३

की जैसे टूट के बिखरा है पैमाना ये शीशे का
हमारा दिल भी यूँ टूटा था दिल से दिल लगाने में//४

चलो यारों जहाँ भी साथ मयखाना चलो ले कर
की कब होने लगे हलचल हमारे दिल दिवाने में//५

उड़ा दी नींद भी मेरी भुला दी हर  खुशी गम को
 बड़ी कुर्बानियां ली है ग़ज़ल खुद को सजाने में //६

सभी थे सच्चे किरदारों के पढ़ने लिखने वाले सब
मुकम्मल ऐब वाले थे  हमीं अपने घराने में //७

मोहब्बत का फ़साना छेड़ दे महफ़िल में गर कोई
हमारा नाम आएगा फसाने को  सुनाने में//८

नए गीतों में अब वो बात ही मिलती नहीं अक्सर
जो होती थी  लता दीदी के उन नग्मे पुराने में//९


अतुल'  तुमको भला कैसे भुला सकता है अब कोई                       
जो रहते हो लबों पे और हर दिल के ठिकाने में //१०                                 
                                     ~अतुल मौर्य
                                    27/04/2020

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