Friday, September 11, 2020

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

 

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी आँखों में कोई रहता है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरे अश्कों संग कोई बहता है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरे दिन में, मेरी रात में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी चुप्पी में, मेरी बात में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अभी लिखकर जिसे मिटाया है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

याद कर के जिसे भुलाया है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

दूर हो के जो पास है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो बहुत बदमाश है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो शायर का दिवान है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो गज़लों का उन्वान है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो कविताओं की भाषा है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो छंदों की परिभाषा है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी हर लिखावट में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

शब्दों की सजावट में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

काग़ज़ के कोरेपन में उसे

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अंतस के सूनेपन में उसे

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो चाँद तारों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो सारे के सारों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो पत्तों में है, डाली में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो खेतों की हरियाली में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

चुम्बन करती हवाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

काली घिरती घटाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो किताबों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो शराबों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

कोयल की आवाज़ में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

परिंदों की परवाज़ में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

सागर में, दरियाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

जलते-तपते सहराओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मोरों के नृत्य प्रदर्शन में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

ग्रंथो में वर्णित दर्शन में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वीणा की हर इक तान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

संगीत की मधुमय गान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

बच्चों की मुस्कान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मंदिर के कीर्तन गान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मस्जिद से होती अजान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

सुबह में, शाम में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अपने-अपने काम में

इन सब जगहों पर मैंने

मैंने उसको ढूँढ़ा है

इन सब जगहों पर मैंने

मैंने उसको पाया है

प्रिय पाठक , प्रिय स्रोता तुम भी

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो।।

                                         ~अतुल मौर्य


तारीख- 11/09/2020





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