Sunday, September 6, 2020

ग़ज़ल–5 न जिसके सर पे साया हो वो जाए तो कहाँ जाए

 

1222 - 1222 - 1222 - 1222

न जिसके सर पे साया हो वो जाए तो कहाँ जाए
जो अपने घर का मारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/१/

सहारा हो ज़मी का तो कदम चलने को हों राज़ी
नहीं जिसका सहारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/२/

दुकानें बंद हो तो भी सभी का काम चलता है
कि जो  मय का दिवाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/३/

चले गोली तो मुमकिन है की कोई बच भी जाए पर
जो नज़रों का निशाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/४/

लहर चलती है तो आ करके टकराती हैं साहिल से
जो पहले ही किनारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/५/

मेरी दीवानगी को देख हैरत में ख़ुदा बोला
'अतुल' सा जो दिवाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/६/
 
                                           ~ अतुल मौर्य

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