Wednesday, January 29, 2020

मैं कल रात बहुत अकेला था

धुंधलाई आंखों से पंखे की पत्तीयाँ गिन रहा था
अचानक घर की याद आयी थी मुझे
अपने को , अपनों से दूर पा रहा था
घड़ी की टिक-टिक कानों पर भारी पड़ रही थी
सिसक और बेचैनी एक साथ बढ़ रही थी
मन के भीतर एक हिस्से में सन्नाटा तो एक हिस्से में शोर था
मैं बहुत भाव विभोर था
कम्बल फेंक कर बिस्तर पे बैठ जाता
तो कभी ओढ़ कर लेट जाता
मेरे साथ अतीत की यादों का मेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था ।


- अतुल मौर्य

Friday, January 24, 2020

हर रोज सुबह होती है


हर रोज सुबह होती है
हर रोज सूरज चमकता है
किरणें बिखेरता, इठलाता हुआ
हर रोज सूरज निकलता है

मेरी छत से
एक मीठी सी धुन गुनगुनाते हुए
पंक्षियों का गुजरना होता है
नर्माहट और ठंडापन लिए
हवा का बहना होता है

हर रोज इन्हीं के जैसे
मेरा भी निकलना होता है
हर रोज वही अपना काम
रस्ते नापना और बस नापते जाना
तब तक नापना की जब तक–
चमक सूरज की धीरे से सिमटने लगे
किरणों को अपनी बटोरने लगे
गुनगुन पंक्षियों की बंद होने लगे
हवा चुप्पी लिए मंद होने लगे,

हासिल होती है एक थकान मेरे हिस्से में 
सूरज,किरण,पंक्षी,हवा सबके हिस्से में

इस थकान को लेकर
घर लौट आता हूँ
इन्तिज़ार के बिस्तर पर
सो जाता हूँ, खो जाता हूँ

फिर सुबह लिए सूरज को आते हुए
बिस्तर में जागे हुए मगर सोए हुए
उसे देखता हूँ , सोचता हूँ
आखिर क्यों ये सुबह होती है
जो हर रोज ये सुबह होती है

– अतुल मौर्य
    

Vedio देखें👉https://youtu.be/FOXo7e2kpA4



Thursday, January 23, 2020

मुझ जैसा ही रहने दो मुझे


मुझ जैसा ही रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

निर्मल, अविरल धाराओं में
शीतल ,सुमधुर हवाओं में
बहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।

काट कर दरख्तों को तूने अपराध किया है
नन्हें परिंदे , थे जिनके घोंसले उन पर
उन सब का घर तूने बर्बाद किया है
इन्हीं दरख्तों से बनती हैं फ़िज़ाएँ जो
इन्हीं दरियाओं से बनती हैं घटायें जो
इन्हीं फ़िज़ाओं, घटाओं में तो रहता हूँ मैं
इन्हीं में रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

ख़ुशी के बदले ग़म देने वाले
बार-बार मुझे छेड़ने वाले
मैं रूठ गया जो तुझसे ,तो तू
शेषनाग की फुफकार देखेगा
फ़िज़ाओं में हाहाकर देखेगा
चारों ओर बस चित्कार देखेगा
समन्दरों में भी अंगार देखेगा
इतनी मुश्किल न बनाओ 
आसान रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे।।

मैं हूँ तो तुम हो ; जानते हो ना ?
तुम ठीक से मुझे पहचानते हो ना ?
प्यास हूँ , साँस हूँ
तुम्हारी जिस्म में आती जाती हवा हूँ मैं
हाँ ! आबोहवा हूँ मैं
आबोहवा सा रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे
मुझ जैसा ही रहने दो मुझे ।।

- अतुल मौर्य