धुंधलाई आंखों से पंखे की पत्तीयाँ गिन रहा था
अचानक घर की याद आयी थी मुझे
अपने को , अपनों से दूर पा रहा था
घड़ी की टिक-टिक कानों पर भारी पड़ रही थी
सिसक और बेचैनी एक साथ बढ़ रही थी
मन के भीतर एक हिस्से में सन्नाटा तो एक हिस्से में शोर था
मैं बहुत भाव विभोर था
कम्बल फेंक कर बिस्तर पे बैठ जाता
तो कभी ओढ़ कर लेट जाता
मेरे साथ अतीत की यादों का मेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था ।
- अतुल मौर्य
अचानक घर की याद आयी थी मुझे
अपने को , अपनों से दूर पा रहा था
घड़ी की टिक-टिक कानों पर भारी पड़ रही थी
सिसक और बेचैनी एक साथ बढ़ रही थी
मन के भीतर एक हिस्से में सन्नाटा तो एक हिस्से में शोर था
मैं बहुत भाव विभोर था
कम्बल फेंक कर बिस्तर पे बैठ जाता
तो कभी ओढ़ कर लेट जाता
मेरे साथ अतीत की यादों का मेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था
मैं कल रात बहुत अकेला था ।
- अतुल मौर्य