Monday, September 28, 2020

ग़ज़ल-6 भरो हुंकार ऐसी

 1222-1222-1222-1222


भरो हुंकार ऐसी, दिल्ली का दरबार हिल जाए

युवाओं कर दो कुछ ऐसा  कि ये सरकार हिल जाए /१/


यहाँ जो बाँटते हैं मजहबों के नाम पे हमको

करो इक वार उनकी नफरती दीवार हिल जाए /२/


हुकूमत चीज क्या मिल कर दहाड़ो साथ में तुम तो

बुलंदी से खड़ी वो चीन की दीवार हिल जाए /३/


जवाने हिन्द गर जय हिन्द का जयघोष जो कर दें

तो डर के फौज जो सरहद के है उस पार हिल जाए /४/


                                     ~अतुल मौर्य

                              तारीख- 29/09/2020


                                    

                       




Friday, September 11, 2020

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

 

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी आँखों में कोई रहता है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरे अश्कों संग कोई बहता है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरे दिन में, मेरी रात में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी चुप्पी में, मेरी बात में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अभी लिखकर जिसे मिटाया है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

याद कर के जिसे भुलाया है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

दूर हो के जो पास है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो बहुत बदमाश है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो शायर का दिवान है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो गज़लों का उन्वान है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो कविताओं की भाषा है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो छंदों की परिभाषा है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मेरी हर लिखावट में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

शब्दों की सजावट में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

काग़ज़ के कोरेपन में उसे

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अंतस के सूनेपन में उसे

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो चाँद तारों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो सारे के सारों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो पत्तों में है, डाली में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो खेतों की हरियाली में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

चुम्बन करती हवाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

काली घिरती घटाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो किताबों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वो शराबों में है

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

कोयल की आवाज़ में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

परिंदों की परवाज़ में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

सागर में, दरियाओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

जलते-तपते सहराओं में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मोरों के नृत्य प्रदर्शन में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

ग्रंथो में वर्णित दर्शन में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

वीणा की हर इक तान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

संगीत की मधुमय गान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

बच्चों की मुस्कान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मंदिर के कीर्तन गान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

मस्जिद से होती अजान में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

सुबह में, शाम में

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

अपने-अपने काम में

इन सब जगहों पर मैंने

मैंने उसको ढूँढ़ा है

इन सब जगहों पर मैंने

मैंने उसको पाया है

प्रिय पाठक , प्रिय स्रोता तुम भी

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो।।

                                         ~अतुल मौर्य


तारीख- 11/09/2020





Tuesday, September 8, 2020

डायरी

 

खोई हुई डायरी का मिलना
यानी एक जीवन का मिलना
पन्ने को पलटना यानी
जिन्दगी को सफर पर ले जाना
उस वक्त रुक सा गया
कोई पन्ना, मेरी नज़रों में
कोई आवाज़, मेरे ज़हन में
कोई आँसू, मेरे अन्तस में
आखिर क्यों लिखा था उसने
"I always with you"
जबकि जाना ही था  उसे
छोड़कर मुझे ..।
पन्ने तो उम्र जैसे ही सीमित होते हैं
जीवन एक डायरी है
काश की उस डायरी के पन्ने खत्म ही न होते
तो मैं उम्र भर पलटता रहता उसके पन्ने
और जी लेता एक जीवन डायरी के संग
पर ऐसा कहाँ होता है
उम्र सीमित है
और पन्ने भी ।
  
                             ~अतुल  
                          तारीख : 30/08/2020

Sunday, September 6, 2020

ग़ज़ल–5 न जिसके सर पे साया हो वो जाए तो कहाँ जाए

 

1222 - 1222 - 1222 - 1222

न जिसके सर पे साया हो वो जाए तो कहाँ जाए
जो अपने घर का मारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/१/

सहारा हो ज़मी का तो कदम चलने को हों राज़ी
नहीं जिसका सहारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/२/

दुकानें बंद हो तो भी सभी का काम चलता है
कि जो  मय का दिवाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/३/

चले गोली तो मुमकिन है की कोई बच भी जाए पर
जो नज़रों का निशाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/४/

लहर चलती है तो आ करके टकराती हैं साहिल से
जो पहले ही किनारा हो वो जाए तो कहाँ जाए/५/

मेरी दीवानगी को देख हैरत में ख़ुदा बोला
'अतुल' सा जो दिवाना हो वो जाए तो कहाँ जाए/६/
 
                                           ~ अतुल मौर्य