हम हैं तन्हा तन्हाई में जीते हैं
मोहब्ब्त की सच्चाई में जीते हैं /१/
आँखें उसकी पैमाने की सूरत हैं
पैमाने की गहराई में जीते हैं /२/
हम जैसे बंजारे बेघर इंशा हैं जो
वो सब रब की परछाई में जीते हैं /३/
लोगों ने बस घायल करना सीखा है
हम घावों की तुरपाई में जीते हैं /४/
मरते हैं रोजाना खुद में दीवाने
मर मर कर वो हिजराई में जीते हैं /५/
हम हैं थोड़े आवाँरे औ शायर भी
सो गज़लों की गोयाई में जीते हैं /६/
~अतुल मौर्य
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