Sunday, July 18, 2021

ग़ज़ल- हम हैं तन्हा तन्हाई में जीते हैं

 

22 - 22 - 22 - 22 - 22 - 2

हम हैं तन्हा तन्हाई में जीते हैं
मोहब्ब्त की सच्चाई में जीते हैं  /१/

आँखें उसकी पैमाने की सूरत हैं
पैमाने की गहराई में जीते हैं  /२/

हम जैसे बंजारे बेघर इंशा हैं जो
वो सब रब की परछाई में जीते हैं /३/

लोगों ने बस घायल करना सीखा है
हम घावों की तुरपाई में जीते हैं /४/

मरते हैं रोजाना खुद में दीवाने
मर मर कर वो हिजराई में जीते हैं /५/

हम हैं थोड़े आवाँरे औ शायर भी
सो गज़लों की गोयाई में जीते हैं /६/

~अतुल मौर्य

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