1222- 1222 -1222- 1222
ग़ज़ल-
तज़ुर्बा ज़िन्दगी का ये मेरा कहता है जानेमन
वही रोता बहुत है जो बहुत हँसता है जानेमन /1/
ख़ुदा कैसे दिखे उनको दिलों में जिनके नफ़रत है
मुहब्बत की नज़र देखो ख़ुदा दिखता है जानेमन /2/
ये चंदा और सूरज और जमीनों आसमां सारे
सभी का रूप तेरे रूप से मिलता है जानेमन /3/
ये दुनिया इक बगीचा है बगीचे में ये देखा मैं
सभी फूलों का हर भँवरे से कुछ रिश्ता है जानेमन /4/
अभी मशरूफ हूँ थोड़ा मैं करियर को बनाने में
तुझे पाने की ख़ातिर बस यही रस्ता है जानेमन /5/
कभी खुलकर नहीं कहता तू गज़लों के बहाने सुन
तेरी सादामिज़ाजी पे 'अतुल' मरता है जानेमन /6/
– अतुल मौर्य
06/12/2021
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