Sunday, December 5, 2021

तज़ुर्बा ज़िन्दगी का ये मेरा कहता है जानेमन

 


1222- 1222 -1222- 1222

ग़ज़ल-

तज़ुर्बा ज़िन्दगी का ये मेरा कहता है जानेमन

वही रोता बहुत है जो बहुत हँसता है जानेमन /1/


ख़ुदा कैसे दिखे उनको दिलों में जिनके नफ़रत है

मुहब्बत की नज़र देखो ख़ुदा दिखता है जानेमन /2/


ये चंदा और सूरज और जमीनों आसमां सारे

सभी का रूप तेरे रूप से मिलता है जानेमन /3/


ये दुनिया इक बगीचा है बगीचे में ये देखा मैं

सभी फूलों का हर भँवरे से कुछ रिश्ता है जानेमन /4/


अभी मशरूफ हूँ थोड़ा मैं करियर को बनाने में

तुझे पाने की ख़ातिर बस यही रस्ता है जानेमन /5/


कभी खुलकर नहीं कहता तू गज़लों के बहाने सुन

तेरी सादामिज़ाजी पे 'अतुल' मरता है जानेमन /6/


– अतुल मौर्य

06/12/2021


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