वही जो कल किया था हमने
वही तो मिल रहा है आज
मगर, मुकाबले नेकियों के
मिल रहा जो बदी का
वो कुछ ज्यादा है
शायद सूद पे सूद समेत
यही वसूल-ए-जिंदगी
जो हम समझ पाते तभी
तो आज न होते ये , रतजगे
जो कर रहे हैं हम
और शायद न होती ये
कविता भी
वही बातें है पुरानी कुछ
यही कुछ साल पुरानी
मालूम होता अंजाम-ए-वफ़ा
तो पत्थर न बनते उसके रस्ते का
और शायद जो कह रहा है हमें वो बेवफ़ा
वो भी
हमारे पास अब कुछ नहीं
कुछ भी नहीं सिवा आपबीती के
और कभी खत्म न होने वाला
वो किस्सा भी
इस किस्से को कहते हुए
दबा के गम सीने में
समेट देता हूं वो किस्सा
कितनी आसानी , कितनी चालाकी से
की मुस्कुरा के कहता हूँ
यही सब है बस..
यही वही , वही यही ...।
~ अतुल मौर्य
06/05/2020
वही तो मिल रहा है आज
मगर, मुकाबले नेकियों के
मिल रहा जो बदी का
वो कुछ ज्यादा है
शायद सूद पे सूद समेत
यही वसूल-ए-जिंदगी
जो हम समझ पाते तभी
तो आज न होते ये , रतजगे
जो कर रहे हैं हम
और शायद न होती ये
कविता भी
वही बातें है पुरानी कुछ
यही कुछ साल पुरानी
मालूम होता अंजाम-ए-वफ़ा
तो पत्थर न बनते उसके रस्ते का
और शायद जो कह रहा है हमें वो बेवफ़ा
वो भी
हमारे पास अब कुछ नहीं
कुछ भी नहीं सिवा आपबीती के
और कभी खत्म न होने वाला
वो किस्सा भी
इस किस्से को कहते हुए
दबा के गम सीने में
समेट देता हूं वो किस्सा
कितनी आसानी , कितनी चालाकी से
की मुस्कुरा के कहता हूँ
यही सब है बस..
यही वही , वही यही ...।
~ अतुल मौर्य
06/05/2020
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