Thursday, May 7, 2020

सन्नाटा और मैं

एक सन्नाटा रहता मेरे अंदर है
चीखता चिल्लाता जो निरन्तर है
दिन - दुपहर को रहे ये मौन साधे
बेचैनियां बाँटता फिर रात भर है

ये सन्नाटा कभी खुशहाल कर देता मुझे
और कभी जीवन पथ पे असहाय कर देता मुझे
इस सन्नाटे ने बेशक  बर्बादियाँ दी हैं मुझे
पर मुवावजे में गीतों की पंक्तियाँ दी हैं मुझे
इस सन्नाटे से है गहरा कोई नाता मेरा
इस सन्नाटे में है विष भरा, अमृत भरा
होता इसके साथ ही सोना मेरा, जगना मेरा
उठना मेरा , बैठना मेरा, ओढ़ना - बिछाना मेरा
कभी खामोशी के सागर में मुझे बहाकर ले जाता
कभी उदासी के पर्वत पर मुझे उड़ाकर ले जाता
बरखा बन के कभी ये बौछार मेरी ओर करता
बदरा बन के कभी ये गर्जना घनघोर करता
इस सन्नाटे में ही मैं गीत बुनता हूँ
इस सन्नाटे में ही मैं प्रीत चुनता हूँ
इस सन्नाटे से घंटो संवाद करता हूँ
जाने कितना वक्त मैं बर्बाद करता हूँ
 संवाद बीच अँखिया जब बह जाने को कहती हैं
दो नयननीरों को मिला इलाहाबाद करता हूँ
कुछ आसुंओं को आंखों से जब रिहाई मिल जाती है
दर्द के मारे बुनियाद हमारे दिल की जब हिल जाती है
तब जा करके सन्नाटा आकार लेता है
तब जा करके  हृदय उद्गार करता है
विसंगतियों से तब आँखे चार करता है
मन ही मन में कितना हाहाकार करता है
हाय ! सन्नाटा ये कितना भयंकर है
मुस्कान पार्वती का है तो
कभी क्रोधित शिव - शंकर है
हाँ ! यही सन्नाटा रहता मेरे अंदर है
चीखता - चिल्लाता जो निरन्तर है
  दिन - दुपहर को रहे ये मौन साधे
बेचैनियां बाँटता फिर रात भर है
                                 
                                   ~ अतुल मौर्य
                                    08/05/2020


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