Monday, January 24, 2022

क्या तुमको मेरी याद नहीं आती

 अच्छा ...तुमको मेरी याद नहीं आती?

तो मत आये; पर ये तो बताओ

क्या तुम्हारे शहर में सूरज नहीं उगता

या वहाँ रात नहीं होती

क्या तुम्हें आसमाँ में बादल नहीं दिखते

या उनसे बरसात नहीं होती

ठीक है ...तुमको मेरी याद नहीं आती

पर ये तो बताओ कि

क्या तुम्हारे शहर में फ़ूल नहीं खिलते

या उनपे भँवरे नहीं मंडराते

क्या तुम्हारे आसपास पेड़ नहीं 

या उनपे कभी पंक्षी गीत नहीं गाते

.....

क्या तुम्हारे शहर में हवा भी नहीं चलती

या वो तुमको छूती नहीं 

या तुम अब अपनी जुल्फें नहीं लहराती

हाँ ..हाँ.. बताओ

बताओ ..कि क्या तुम अब कभी दिया नहीं जलाती

या उनकी लौ से रौशनी नहीं आती

.....

चलो माना कि तुम्हारे शहर में पर्वत नहीं , समंदर नहीं

मगर सड़कों पे घास तो है

क्या उनपे ओस की बूँदें नहीं हैं

ठीक है ...गर ये प्रेमिल  एहसास नहीं तो न ही सही

अब मैं तुम्हें याद नहीं ...तो .....न ही सही..।।


Sunday, December 5, 2021

तज़ुर्बा ज़िन्दगी का ये मेरा कहता है जानेमन

 


1222- 1222 -1222- 1222

ग़ज़ल-

तज़ुर्बा ज़िन्दगी का ये मेरा कहता है जानेमन

वही रोता बहुत है जो बहुत हँसता है जानेमन /1/


ख़ुदा कैसे दिखे उनको दिलों में जिनके नफ़रत है

मुहब्बत की नज़र देखो ख़ुदा दिखता है जानेमन /2/


ये चंदा और सूरज और जमीनों आसमां सारे

सभी का रूप तेरे रूप से मिलता है जानेमन /3/


ये दुनिया इक बगीचा है बगीचे में ये देखा मैं

सभी फूलों का हर भँवरे से कुछ रिश्ता है जानेमन /4/


अभी मशरूफ हूँ थोड़ा मैं करियर को बनाने में

तुझे पाने की ख़ातिर बस यही रस्ता है जानेमन /5/


कभी खुलकर नहीं कहता तू गज़लों के बहाने सुन

तेरी सादामिज़ाजी पे 'अतुल' मरता है जानेमन /6/


– अतुल मौर्य

06/12/2021


Sunday, July 18, 2021

ग़ज़ल- हम हैं तन्हा तन्हाई में जीते हैं

 

22 - 22 - 22 - 22 - 22 - 2

हम हैं तन्हा तन्हाई में जीते हैं
मोहब्ब्त की सच्चाई में जीते हैं  /१/

आँखें उसकी पैमाने की सूरत हैं
पैमाने की गहराई में जीते हैं  /२/

हम जैसे बंजारे बेघर इंशा हैं जो
वो सब रब की परछाई में जीते हैं /३/

लोगों ने बस घायल करना सीखा है
हम घावों की तुरपाई में जीते हैं /४/

मरते हैं रोजाना खुद में दीवाने
मर मर कर वो हिजराई में जीते हैं /५/

हम हैं थोड़े आवाँरे औ शायर भी
सो गज़लों की गोयाई में जीते हैं /६/

~अतुल मौर्य

Saturday, May 15, 2021

बिन साजन सावन क्या सावन

 

दिन ढलते-ढलते ,ढलते-ढलते थोड़ा-थोड़ा बचा हुआ
रूई-रूई बीच बदरिया बिन्दी भर सूरज छुपा हुआ
पेड़ की कोपल से कोयल की जब-जब कोई कूक उठे
घोर घने मन-उपवन की हर टहनी में एक हूक उठे
छुए  बैरन पुरवईया ले अंगड़ईयां तन खीझ उठे
खेतन में देख मोरन की अठखेलियाँ मन रीझ उठे
बेला ,चम्पा ,गेंदा  पर तितली, भँवरे मंडराते हैं
देख अकेला मेरा जीवन मुझ पे वे मुसकाते हैं
दृश्य सुहावन ये सारे मनभावन तब ही लगते हैं
हिय में बसने वाले पिय पास मेरे जब होते हैं
दीप जलाकर जोहूँ दीपों संग खुद भी जलती हूँ
मन मंदिर में जो चित्र है अंकित उसकी छवि निरखती हूँ
मोती माला की बिखरे ज्यों त्यों मैं रोज बिखरती हूँ
एक आस है कि प्रिय आएंगे यही सोच के रोज सिमटती हूँ
नहि बोल किसी की भावे है नहि अच्छी किसी की चूप लगे
बिन साजन सावन क्या सावन बारिश भी एक धूप लगे

~ अतुल मौर्य
१२/०५/२०२१

Tuesday, April 13, 2021

ग़ज़ल - कमाने वालों की यारों कमाई छूट जाती है

 

1222 - 1222 - 1222 - 1222

कमाने वालों की यारों कमाई छूट जाती है
मुहब्बत सिर चढ़े तो फिर पढ़ाई छूट जाती है /1/

बड़े रिश्ते, मुहब्बत, दोस्ती देखी ज़माने में
ज़रा सी बात पर अब तो कलाई छूट जाती है / 2/

इकाई की जगह तुम हो दहाई की जगह दुनिया
इकाई याद रहती है दहाई छूट जाती है / 3/

वतन में मुफलिसी है, चाहे डिजिटल हो गए हों हम
अभी पैसे की किल्लत से दवाई छूट जाती है /4/

मुसलसल काम ही है फार्मूला कामयाबी का
मुसलसल दूध मथने पर मलाई छूट जाती है /5/

– अतुल मौर्य

तारीख: 11 /04/2021

Wednesday, March 17, 2021

कविता- आँसू ऐसे होते हैं

 

कभी कभी ऐसा होता है क्या
कहीं पर बैठे- बैठे
कहीं पर खोए - खोए
गुपचुप से अचानक आता है आँसू ?

नही-नही.. सच तो ये है
कि ये अचानक नहीं होता
उठती रहती हैं लहरें
अचेतन मन-समंदर में
होती रहती है हलचल
जैसे धरती के अंदर
और फिर लहरें हो जातीं हैं ज्वार
और वो हलचल ज्वालामुखी
मन को जैसे ही पातीं हैं कमज़ोर
फूट पड़ती हैं वहीं से

किसी आँख में उमड़ते ज्वार
या बहते लावे को देखना
तो उसे बहने देना तुम
क्योंकि समंदर का ज्वार
और ज्वालामुखी का लावा
ख़ुद से ही होता है शांत
बहते - बहते
बहते - बहते ..।।

~अतुल मौर्य
तारीख : 14 /03/2021

Thursday, March 4, 2021

ग़ज़ल- हज़ारों जख्म खाकर भी यहां पर मुस्कुराना है

 बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम


1222 - 1222 - 1222 - 1222

हज़ारों ज़ख्म खाकर भी यहां पर मुस्कुराना है
हमें काटों में रहकर भी सदा ख़ुशबू लुटाना है /1/
                 
अलग अंदाज होता है जवानी के दिनों का भी
हवा भी तेज़ है इसमें दिये को भी जलाना है  /2/

नज़र आए कहीं यारों तो मुझको इत्तला करना
हथेली खींच कर उसकी मुझे इक दिल बनाना है /3/
           
कभी बारिश कभी सावन कभी फ़ूलों के गुलशन सा
शुरू में प्यार का मौसम बहुत लगता सुहाना है /4/

नए दिल हैं नई धड़कन नई रुत है नया मंज़र
मुहब्बत भी नई बेशक मगर किस्सा पुराना है /5/
             
वो बुत जिसको तरासा हमने अपनी ज़िन्दगी देकर
उसे ही याद रखना है उसी को भूल जाना है  /6/

अमां सीखो रियाज़ी ज़िन्दगी का फ़लसफा हमसे
मुहब्बत जोड़ना इसमें  से नफ़रत को घटाना है  /7/
                
                                                  – अतुल मौर्य
                                           तारीख: 02/03/2021

Thursday, February 11, 2021

ग़ज़ल -तुम मिले तो थी रोशनी कोई

 

बहर-ए- ख़फ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफाइलुन फ़ेलुन
2122 / 1212 / 22

तुम मिले तो थी रोशनी कोई
तुम नहीं तो है तीरगी कोई /1/
                                   दोस्त तुमसे थी दोस्ती ऐसी
                                 जैसे आशिक की आशिकी कोई /2/
तुम  मिले  ना अगर हमें होते
हम न कर पाते शायरी कोई /3/
                               दिल मेरा दिल है या है शीशा-घर
                                रोज़ ही चीज़ टूटती कोई /4/
जिस तरह हँस रहा मैं पी कर ग़म
ऐसे जीता है ज़िन्दगी कोई /5/
                                हाँ समझ लो है इश्क तुमको भी
                                 ग़र लगे ख़ुद से क़ीमती कोई /6/
भर गया दिल है दोस्तों से अब
कर लो मुझसे भी दुश्मनी कोई /7/
                                        थोड़ा फैशन में तू 'अतुल' रह ले
                                       अब नहीं चाहे सादगी कोई /8/
         ~अतुल मौर्य
तारीख : 09/02/2021

Monday, January 25, 2021

ग़ज़ल -4 मेरे खामोश लहजे से कहीं ऐसा न हो जाए



बह्र -
1222 - 1222 - 1222 -1222

मेरे खामोश लहजे से कहीं ऐसा न हो जाए
मुझे डर है कि मेरा हमनवा गुस्सा न हो जाए /१/

जो तुमसे बात ना हो तो बेचारा दिल ये सोचे की
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए /२/

इधर की बात करता है उधर तो जान ले फिर तू
तेरे किरदार का आँचल कहीं मैला न हो जाए /३/

सुना है मिल रही हैं सबसे अब वो झील सी आंखें
तो फिर उस झील का पानी कहीं खारा न हो जाए /४/

न छेड़ो इस  तरह मुझको  कहे कुदरत यही हमसे
जहाँ रहता समंदर है वहाँ सहरा न हो जाए / ५/

'अतुल' रोओ न तुम ऐसे जुदा यारों  की यादों में
तबीअत में कहीं रोने से कुछ घाटा न हो जाए/६/

                                     ~ अतुल मौर्य

Wednesday, January 20, 2021

रात के आँसू

 

मन के बाहर का वातावरण सो रहा
मन के भीतर है जो ,रो रहा-रो रहा
गर्जना मन की मन में ही चलती रही
आँख मलते रहे रात ढलती रही
यादों के जाने कितने किले ढह गए
और मलबे में हम थे दबे रह गए
अश्कों से थी भरी आँख प्यासी रही
और चेहरे पे कोई उदासी रही
चल पड़ा हूँ तुम्हे ढूंढ़ने स्वर्ग तक
मेरी दुनिया तुम्ही से तो है तुम तलक
ये मुझे है ख़बर और तुम्हें भी पता
ना ही मैं हूँ ग़लत ना तेरी कुछ ख़ता
बात हमने किया जब-जब भी कभी
जल उठे सारे किस्मत के पन्ने सभी
राह तक लूंगा मैं उम्र के छोर तक
आखिरी सांस की आखिरी डोर तक
आखिरी सांस की आखिरी डोर तक
रात का ये अंतिम पहर खो रहा
ले के पलकों पे मैं बोझ हूँ ढो रहा
मन के बाहर का बातावरण सो रहा
मन के भीतर है जो , रो रहा-रो रहा
रो रहा ... रो रहा...

~ अतुल मौर्य

    तारीख : 21 जनवरी 2021