अच्छा ...तुमको मेरी याद नहीं आती?
तो मत आये; पर ये तो बताओ
क्या तुम्हारे शहर में सूरज नहीं उगता
या वहाँ रात नहीं होती
क्या तुम्हें आसमाँ में बादल नहीं दिखते
या उनसे बरसात नहीं होती
ठीक है ...तुमको मेरी याद नहीं आती
पर ये तो बताओ कि
क्या तुम्हारे शहर में फ़ूल नहीं खिलते
या उनपे भँवरे नहीं मंडराते
क्या तुम्हारे आसपास पेड़ नहीं
या उनपे कभी पंक्षी गीत नहीं गाते
.....
क्या तुम्हारे शहर में हवा भी नहीं चलती
या वो तुमको छूती नहीं
या तुम अब अपनी जुल्फें नहीं लहराती
हाँ ..हाँ.. बताओ
बताओ ..कि क्या तुम अब कभी दिया नहीं जलाती
या उनकी लौ से रौशनी नहीं आती
.....
चलो माना कि तुम्हारे शहर में पर्वत नहीं , समंदर नहीं
मगर सड़कों पे घास तो है
क्या उनपे ओस की बूँदें नहीं हैं
ठीक है ...गर ये प्रेमिल एहसास नहीं तो न ही सही
अब मैं तुम्हें याद नहीं ...तो .....न ही सही..।।