मैं
परेशां तो पहले भी था
हैरां तो पहले भी था
मजबूर तो पहले भी हुआ था
थक के चूर तो पहले भी हुआ था
पहले भी कई बार
मना किया है भूख को ,की आज मत आना
आमन्त्रित किया है नींद को ,की आज जल्दी आना
बनाये हैं कई बार बहाने
बोलें हैं सौ-सौ झूठ
मगर
इतना परेशां , इतना हैरां
इतना मजबूर , इतना थक के चूर
इतना भूखा, कई रातों का जगा
पहले कभी न था
नहीं आते अब मुझे बनाने बहाने
और न आते हैं वो झूठ भी
आज विवश हूँ सोचने के लिए
आखिर कौन हूँ मैं , क्यों हूँ इतना तंग
मैं वही कि
जिसके दम से सड़कें ,सड़क बनीं हैं
जिसके दम से शहर , शहर बनें हैं
जिसके दम से चलते हैं कल - कारखानें
जिसके दम से सांस लेती हैं मशीनें
जिसके दम से इठलाती हैं ऊँची इमारतें
जिसके दम से मुस्कुराती हैं सारी दुकानें
क्या सच में यही हूँ मैं
यही हूँ तो क्यों
ये दुकानों , इमारतों , कारखानों और शहरों के मालिक
न पाल सके मेरा पेट
न दे सके सर पे मेरे छत
न दे सके चंद सिक्के
न दे सके उम्मीद
क्या इसीलिए
की प्यासी थीं मेरे खूं की रेल की पटरियां
की भूखी थीं सड़कें मेरे पावों के छालों के लिए
या करनी थी सियासत आकाओं , हुक्मरानों को
या रचनी थी कुछ कविताएं ,
बनाने थे संगीत ,
खिंचवानी थी फ़ोटो मेरी
मुफलिसी के साथ
मेरी बेबसी के साथ
बताओ क्यों , क्यों , क्यों
जवाब दो मुझे , भारत !
जवाब दो मुझे ।
मैं
परेशां तो पहले भी था
हैरां तो पहले भी था ..।।
~ अतुल मौर्य
परेशां तो पहले भी था
हैरां तो पहले भी था
मजबूर तो पहले भी हुआ था
थक के चूर तो पहले भी हुआ था
पहले भी कई बार
मना किया है भूख को ,की आज मत आना
आमन्त्रित किया है नींद को ,की आज जल्दी आना
बनाये हैं कई बार बहाने
बोलें हैं सौ-सौ झूठ
मगर
इतना परेशां , इतना हैरां
इतना मजबूर , इतना थक के चूर
इतना भूखा, कई रातों का जगा
पहले कभी न था
नहीं आते अब मुझे बनाने बहाने
और न आते हैं वो झूठ भी
आज विवश हूँ सोचने के लिए
आखिर कौन हूँ मैं , क्यों हूँ इतना तंग
मैं वही कि
जिसके दम से सड़कें ,सड़क बनीं हैं
जिसके दम से शहर , शहर बनें हैं
जिसके दम से चलते हैं कल - कारखानें
जिसके दम से सांस लेती हैं मशीनें
जिसके दम से इठलाती हैं ऊँची इमारतें
जिसके दम से मुस्कुराती हैं सारी दुकानें
क्या सच में यही हूँ मैं
यही हूँ तो क्यों
ये दुकानों , इमारतों , कारखानों और शहरों के मालिक
न पाल सके मेरा पेट
न दे सके सर पे मेरे छत
न दे सके चंद सिक्के
न दे सके उम्मीद
क्या इसीलिए
की प्यासी थीं मेरे खूं की रेल की पटरियां
की भूखी थीं सड़कें मेरे पावों के छालों के लिए
या करनी थी सियासत आकाओं , हुक्मरानों को
या रचनी थी कुछ कविताएं ,
बनाने थे संगीत ,
खिंचवानी थी फ़ोटो मेरी
मुफलिसी के साथ
मेरी बेबसी के साथ
बताओ क्यों , क्यों , क्यों
जवाब दो मुझे , भारत !
जवाब दो मुझे ।
मैं
परेशां तो पहले भी था
हैरां तो पहले भी था ..।।
~ अतुल मौर्य